हालातों के बवंडर बेवक्त बस्तियां उजाड़ दिया करते हैं,
जहाँ कभी जिंदगियों के मेले थे, अब यादों के खँडहर बचे हैं वहां,
गुनगुनी धुप खिलखिलाती थी तब भी वहां के ज़र्रे ज़र्रे पर,
अब कोशिश ज़रा नाकाम सी लगती है,
हर आहट सन्नाटा चीरती सी लगती है,
हवा की सरसराहट भी तूफ़ान लगती है,
फूल आज भी खिलते हैं लेकिन वहां,
ये देख कर ज़िन्दगी ख़ुद हैरान सी लगती है |
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